लोक संस्कृति, परंपरा और सामाजिक एकता का प्रतीक *उत्तराखंड महोत्सव का चतुर्थ दिवस पूर्णतः सेना और संस्कृति के नाम समर्पित रहा। कार्यक्रम का शुभारंभ लखनऊ मंडलायुक्त श्री विजय विश्वास पंत एवं रिटायर्ड मेजर जनरल शरद विक्रम सिंह ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलन कर किया*। इस अवसर पर मंच पर अनेक पूर्व वीर सैनिकों को सम्मानित किया गया, जिनकी वीरता और देशभक्ति ने समूचे वातावरण को गौरवमयी बना दिया।
दिनभर महोत्सव में उत्तराखंड की शौर्य और लोक परंपराओं का संगम देखने को मिला। अल्मोड़ा से आई छोलिया नृत्य के दल ने अपनी पारंपरिक युद्ध मुद्राओं और जोशभरी ताल पर दर्शकों को वीर रस से ओतप्रोत कर दिया। वहीं *बुंदेलखंड के पाई डंडा लोकनृत्य ने अद्भुत करतबों और लयबद्ध नृत्य-भंगिमाओं से सबका दिल जीत लिया।* राजस्थान, पंजाब और उत्तराखंड की लोक झलकियों ने महोत्सव को एक रंगबिरंगा सांस्कृतिक समागम बना दिया।
गोमती तट पर फैला यह महोत्सव जैसे-जैसे आगे बढ़ा, वहां *लोक संस्कृति की सुगंध और परंपराओं के रंग चारों ओर बिखरने लगे। सायंकाल का दृश्य तो और भी मनोहारी रहा — जब बद्री विशाल की आरती से आरंभ हुआ कार्यक्रम देर रात तक अपनी मधुरता और उल्लास से लोगों को बाँधे रखा।*
महोत्सव के दौरान हुई *झोड़े–चांचरी प्रतियोगिता ने दर्शकों में अपार उत्साह भर दिया। ‘नाचेगा भारत’ और ‘डांस उत्तराखंड डांस’ के दूसरे राउंड की ऊर्जावान प्रस्तुतियों ने मंच को झूमने पर मजबूर कर दिया। वहीं “छपेली” की प्रस्तुति ने दर्शकों को एक दशक पूर्व के उत्तराखंड की लोक स्मृतियों में पहुँचा दिया।*
सांस्कृतिक संध्या का आकर्षण ‘वॉयस ऑफ उत्तराखंड’ की लाइव प्रस्तुति, जिसने अपनी मधुर ध्वनियों और जोशपूर्ण गायन से वातावरण को सुरमयी बना दिया।
दिनभर चली इन शानदार प्रस्तुतियों और उमड़े जनसैलाब ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि *उत्तराखंड महोत्सव केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि यह लोक संस्कृति, परंपरा, वीरता और एकता का जीवंत उत्सव है — जहाँ हर रंग, हर ताल, और हर मुस्कान अपनेप की कहानी कहती है।
