नई दिल्ली : ईडी से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया कि टॉप कोर्ट के जजों से भी गलती हो सकती है. अपनी गलती को स्वीकार करने में कोई शर्म की बात नहीं है. बेंच ने कहा कि अदालतों को अपने आदेशों में गलतियों को स्वीकार करने और केस बंद होने के बाद भी उन्हें सुधारने से पीछे नहीं हटना चाहिए. न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति संजय कुमार द्वारा पारित एक साल पुराने आदेश में एक नहीं बल्कि कुल दो खामियां पाई गई, जिन्हें अब सुधारा गया है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक आदेश में पहली खामी यह थी कि बेंच ने अपनी शिकायतें हाईकोर्ट में जाकर उठाने को कहा था. वहीं, अंतरिम संरक्षण दे दिया जो हाईकोर्ट में मामले के लंबित रहने तक जारी रहेगा. आमतौर पर किसी केस में सुप्रीम कोर्ट का संरक्षण तब तक बना रहता है जब तक कोई पक्ष हाईकोर्ट नहीं पहुंच जाते. सुप्रीम कोर्ट अंतरिम संरक्षण पर निर्णय लेने का काम हाईकोर्ट पर छोड़ देता है. आदेश में दूसरी गलती यह थी कि सुप्रीम कोर्ट ने इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस और उसके अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा संरक्षण देने और उनके खिलाफ कर्ज वसूली और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में ईडी की कार्यवाही पर रोक लगाने का आदेश जांच एजेंसी को सुनवाई का मौका दिए बिना पारित किया गया. ईडी ने इस आदेश में संशोधन की मांग की थी.
‘हम अपनी गलती स्वीकारते हैं’
न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की बेंच ने मंगलवार को दोनों गलतियों को स्वीकार किया. संशोधित आदेश में कोर्ट ने कहा कि वसूली की कार्यवाही में अंतरिम संरक्षण तब तक रहेगा जब तक पक्षकार हाईकोर्ट में नहीं चले जाते और उसके बाद हाईकोर्ट को अंतरिम आदेश पर निर्णय लेना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “अंतिम उपाय की कोर्ट होने के नाते, हम अपने आदेशों में किसी भी गलती को स्वीकार करने से पीछे नहीं हटेगी और ऐसी गलतियों को सुधारने के लिए तैयार रहेगी.”
‘कानूनी प्रणाली जजों की गलती को स्वीकार करती है’
बेंच ने ईडी की याचिका स्वीकार करते हुए पिछले साल 4 जुलाई को मनी लॉन्ड्रिंग मामले से संबंधित आदेश का हिस्सा वापस ले लिया. वी के जैन बनाम दिल्ली एचसी में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए पीठ ने कहा, “हमारी कानूनी प्रणाली न्यायाधीशों की गलती को स्वीकार करती है.