डॉ0 हरिवंश राय बच्चन एवं गजानन माधव मुक्तिबोध स्मृति समारोह

उत्तर प्रदेश राज्य लखनऊ शहर

दिनांक 07 नवम्बर, 2025 उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा डॉ० हरिवंश राय बच्चन एवं गजानन माधव मुक्तिबोध स्मृति समारोह के शुभ अवसर पर दिन शुक्रवार 07 नवम्बर, 2025 को एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन हिन्दी भवन के निराला सभागार लखनऊ में पूर्वाह्न 10.30 बजे से किया गया ।
दीप प्रज्वलन, माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण, पुष्पार्पण के उपरान्त वाणी वंदना डॉ0 कामिनी त्रिपाठी द्वारा प्रस्तुत की गयी ।
सम्माननीय अतिथि— डॉ० ओम कुमार मिश्र ‘ओम निश्चल’, डॉ० वशिष्ठ द्विवेदी ‘अनूप’, डॉ० ममता तिवारी एवं डॉ० रमेश प्रताप सिंह का स्वागत उत्तरीय एवं स्मृति चिह्न भेंट कर डॉ० अमिता दुबे, प्रधान सम्पादक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा किया गया ।

डॉo ओम कुमार मिश्र ‘ओम निश्चल’ ने कहा- हरिवंशराय बच्चन छन्द विधा में निष्णात थे । कविता की कोई सीमा नहीं होती है। बच्चन आत्म निरीक्षण के कवि हैं । कवि में तल्लीनता का भाव होना चाहिए । हर कवि की काव्यात्मक प्रवृत्तियाँ अलग-अलग होती हैं । मुक्तिबोध साम्राज्यवाद के खिलाफ थे । मधुशाला, मुधबाला, मधुकलश को पाठक पढ़कर गीत हृदय की अभिव्यक्ति है | बच्चन ने जीवन के समानान्तर कविता लिखी । बच्चन जी को किसी भी वाद से बांधा नहीं जा सकता है। बच्चन जी रचनाओं के ‘बसेरे से दूर’, ‘नीड़ का निर्माण फिर’, ‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’, निशा निमंत्रण रचनाएं साहित्य जगत में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। कविता आत्म अभिव्यक्ति है। बच्चन की रचनाओं में कल्पना व यथार्थ के तत्व विद्यमान हैं। बच्चन जी आलोचनाओं से कभी घबराते नहीं थे। उनकी आत्मकथाएं जीवन दर्शन से परिपूर्ण हैं ।
डॉ० वशिष्ठ द्विवेदी ‘अनूप’ ने कहा- मुक्तिबोध ने अपनी साहित्यिक यात्रा की शुरुआत कविताओं से की। उनकी कविताओं में एक बहाव दिखायी देता है। किसी बड़ी रचना का जन्म उत्कट अनुभव से होता है । जीवन व घटना का अनुभव ही किसी रचना को भावात्मक स्वरुप प्रदान करता है । मुक्तिबोध अपनी रचनाओं में एक स्वप्निल संसार का निर्माण करते हैं । मुक्तिबोध की कविताओं में स्वाभिमान के तत्व विद्यमान हैं। उन्होंने अपनी कविताओं में समाज में व्याप्त भयावह शोषण को चित्रित किया । वे मध्यम वर्ग के छद्म आचरण का विरोध करते रहे।
डॉ० ममता तिवारी ने कहा- हरिवंश राय बच्चन जी समाज व समय के प्रति सजग थे। साहित्यकार अपने समय व समाज की उपज होता है । हरिवंश राय बच्चन जी का साहित्य में योगदान अविस्मरणीय है। बच्चन जी की रचनाओं में मधुशाला, मधुबाला, मधु कलश काव्य जगत
में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। उनकी कविताएं सहज व सरल हैं। सहजता व सरलता में अनुभूतियों का समावेश होता है। उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं में अपनी लेखनी चलायी । उनकी काव्य रचना में एक क्रमिक विकास मिलता है ।
डॉ० रमेश प्रताप सिंह ने कहा- मुक्तिबोध आत्म संघर्ष के कवि हैं। अपनी कविताओं में स्वयं से लड़ते हुए दिखायी देते हैं। “अंधेरे में कविता” मुक्तिबोध की काफी प्रसिद्ध रही है। “चाँद का मुँह टेढ़ा है” कविता साहित्य जगत में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है। मुक्तिबोध ने तत्कालीन समाज की पूरी व्याख्या अपने साहित्य में की है। उनके पूरे साहित्य में राजनीतिक एवं सामाजिक व्यवस्थाओं का परिदृश्य दिखायी देता है । मुक्तिबोध की कविताओं में प्रयुक्त प्रत्येक शब्द, वाक्य सारगर्भित हैं । मुक्तिबोध का सम्पूर्ण जीवन काफी संघर्षमय रहा है। उन्होंने जीवन में कभी समझौता नहीं किया ।
इस अवसर पर गजानन माधव मुक्तिबोध की कहानी “खलील काका’ के अंश का पाठ राधिका रावत, हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथा ” नीड़ का निर्माण” के अंश का पाठ सौम्या मिश्रा, गजानन माधव मुक्तिबोध की कविता “ओ मेघ” का पाठ राहुल कुमार एवं गजानन माधव मुक्तिबोध की कविता “कई बार ” तथा हरिवंशराय बच्चन की कविता “निर्माण” का पाठ जितेन्द्र कुमार ने प्रस्तुत किया ।
इस अवसर पर बंकिम चन्द्र रचित ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूर्ण होने पर ‘वंदे मातरम’ का सामूहिक गायन भी किया गया ।
डॉ० अमिता दुबे, प्रधान सम्पादक, उ०प्र० हिन्दी संस्थान द्वारा कार्यक्रम का संचालन एवं संगोष्ठी में उपस्थित समस्त साहित्यकारों, विद्वत्तजनों एवं मीडिया कर्मियों का आभार व्यक्त किया गया।

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