UP में अस्तित्व बचाने के लिए कांग्रेस का दलित और मुस्लिम पर फोकस

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लखनऊ। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए यूपी में अपने अस्तिव बचाने के लिए कांग्रेस मुस्लिम और दलित पर दांव खेल सकती है। यही वजह है कि इन दोनों वर्गों पर फोकस किया जा रहा है। जानकारों की माने तो भारत जोड़ो यात्रा और कर्नाटक में मिली जीत के बाद जोश से लबरेज कांग्रेस का फोकस यूपी पर है।

पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा यहां भले लंबे समय से न आए हों, लेकिन उनकी नजर यहां की गतिविधियों पर रहती है।

राजनीति जानकर कहते हैं कि कांग्रेस दलित और मुस्लिम वोटरों को अपने पाले लाने के लिए संविधान और जातीय जनगणना जैसे मुद्दों को धार दे रही है। सविधान और बाबा साहब के नाम से दलित का कुछ वर्ग इधर उधर हो सकता है।

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि निकाय चुनाव में कांग्रेस की झोली में मुस्लिम वोट ठीक से आया है। इसी को देखते हुए पार्टी ने दलित और मुस्लिम के गठजोड़ पर रणनीति बनाना शुरू किया है।

उन्होंने बताया कि यह दोनो वोटर कई दशकों तक कांग्रेस के साथ रहे हैं। इसी को देखते हुए पार्टी का फोकस इसी पर है।

पार्टी की रणनीतिकारों का मानना है कि दोनों ही वोट बैंक को जोड़कर ना सिर्फ लोकसभा में बल्कि भविष्य में भी अपना जनाधार वापस पाया जा सकता है। यही कारण है कि शीर्ष नेतृत्व ने दलित अल्पसंख्यक गठजोड़ को लेकर अभियान भी चलाने के निर्देश दिए हैं। इसके तहत कांग्रेस का अल्पसंख्यक विभाग दलित बस्तियों में जाकर चाय पर चर्चा जैसे अभियान को शुरू किया।

उन्होंने बताया कि लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी गांव-गांव में संविधान रक्षक को तैयार करने का काम कर रही है। यह संविधान रक्षक सीधे प्रदेश स्तरीय नेताओं के संपर्क में रहेंगे।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि यूपी की 80 लोकसभा सीटें हर दल के लिए काफी अहिमायत रखती है। उन्होंने बताया कि जब जातीय समीकरण की बात हो तो मुस्लिम दलित फैक्टर को नकारा नहीं जा सकता। सरकार बनाने या बिगाड़ने में इस वर्ग की अहम भूमिका होती है। राज्य में मुस्लिम वोटरों की संख्या तकरीबन 19-20 फीसदी के आसपास है। वहीं दलित वोटरों की संख्या 20-21 फीसदी है। यह दोनों वर्ग किस तरह से उत्तर प्रदेश के चुनाव को प्रभावित करते हैं।

पांडेय ने बताया कि आजादी के बाद से नब्बे के दशक तक मुस्लिम मतदाता कांग्रेस का परंपरागत वोटर माना जाता था। लेकिन, राममंदिर आंदोलन के चलते मुस्लिम समुदाय कांग्रेस से दूर हुआ तो क्षेत्रीय दलों ने लपक लिया। यही हालत दलितों की भी कुछ हद तक रही। वह कांग्रेस से छिटक कर बसपा के पाले में गया। लेकिन 2014 के बाद कुछ वोट पर भाजपा ने भी सेंधमारी कर ली।

प्रसून पांडेय ने बताया कि कांग्रेस ने दोनों वोट बैंक पर फोकस करना शुरू किया है। जैसे जैसे चुनाव नजदीक आयेगा, कांग्रेस इसी वोट बैंक पर फोकस करेगी। इसी कारण वह बसपा से गठबंधन करने की ज्यादा इच्छुक है। 2024 के लोकसभा चुनाव में दोनों वर्ग एकजुट हो जाते हैं तो बड़ा सियासी उलटफेर से इंकार किया नहीं जा सकता है।

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