हिन्दी सिनेमा में चाहिए बदलाव, विक्रम वेधा की असफलता ने फिर दिया संकेत

मनोरंजन

गत 9 सितम्बर को प्रदर्शित होकर बॉक्स ऑफिस पर सफल हुई ब्रह्मास्त्र के बाद हिन्दी फिल्म उद्योग को उम्मीद थी कि आने वाले दिनों में प्रदर्शित होने वाली फिल्में सिनेमाघरों में दर्शकों की आवाजाही को बरकरार रखने में सफल होंगी। ब्रह्मास्त्र को बॉक्स ऑफिस पर कमाई के दो सप्ताह मिले, 3रे सप्ताह उसे चुप और धोखा से थोड़ा मुकाबला करना पड़ा। 30 सितम्बर को प्रदर्शित हुई ऋतिक रोशन सैफ अली खान की मेगा बजट फिल्म विक्रम वेधा को लेकर बॉक्स ऑफिस आशान्वित था कि अब फिर कमाई के द्वारा खुलेंगे लेकिन फिल्म के दो दिन के प्रदर्शन को देखते हुए बॉक्स ऑफिस पूरी तरह से निराश हो चुका है। पहले दिन बॉक्स ऑफिस पर 10 करोड़ की शुरूआत करने वाली विक्रम वेधा ने दूसरे दिन 25 प्रतिशत की ग्रोथ लेते हुए 12.75 करोड़ का कारोबार करने में सफलता प्राप्त की लेकिन इन आंकड़ों को देखने के बाद यह स्पष्ट हो चुका है कि हिन्दी बॉक्स ऑफिस को एक बार फिर से मात मिली है।

विक्रम वेधा के साथ ही 30 सितम्बर को मणिरत्नम के निर्देशन में बनी पैन इंडिया फिल्म पोन्नियन सेल्वन-1 का प्रदर्शन हुआ। इस फिल्म ने अकेले तमिलनाडु में पहले दिन 26 करोड़ का कारोबार करते हुए पूरे दक्षिण भारत से 45 करोड़ का कारोबार करने में सफलता प्राप्त की। पोन्नियन सेल्वन ने पहले दिन के कारोबार से स्पष्ट संकेत दिया कि यह बॉक्स ऑफिस पर दक्षिण भारत से 200 करोड़ का कारोबार करने में सफल हो जाएगी वहीं दूसरी ओर विक्रम वेधा ने हिन्दी सिनेमा को एक और असफलता हाथ में दे दी है। विक्रम वेधा 3 दिन में बॉक्स ऑफिस पर पोन्नियन सेल्वन-1 के पहले दिन के कारोबार को भी छू नहीं पाएगी।

विक्रम वेधा प्राचीन काल की विक्रम बेताल की कहानी पर आधारित है। यह इसी नाम की तमिल फिल्म (विक्रम वेधा 2017) का हिन्दी रीमेक है। फिल्म का निर्देशन पुष्कर-गायत्री ने किया है जिन्होंने मूल तमिल फिल्म को भी निर्देशित किया था। निर्देशक द्वय ने कहानी के साथ-साथ उसकी पटकथा भी बेहतरीन लिखी है। उनका पटकथा लिखने का ढंग इतना अनोखा है कि लगातार चलते दृश्यों को भी नया अंदाज दिया है। विशेष रूप से वेधा का विक्रम को कहानियाँ सुनाना, दर्शकों को एक नया अनुभव कराता है। हालांकि फिल्म पूरी तरह से श्रेष्ठ नहीं है। शुरूआती 25 मिनट तक लगातार सैफ को परदे पर दिखते हुए दर्शक उखड़ जाता है। फिल्म में एक्शन दृश्य ज्यादा है, खलपात्र के रूप में ऋतिक का अपने दुश्मनों को गाजर-मूली की तरह काटना अतिरंजित है। इसके अतिरिक्त फिल्म में एक भी दृश्य ऐसा नहीं है जो दर्शकों के चेहरे पर मुस्कान ला सके।

विक्रम वेधा में ऋतिक रोशन ने अपनी अदाकारी का लोहा मनवा लिया है। वे वेधा के किरदार में इस प्रकार घुसे हैं कि दर्शक उनके अभिनय से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। दृश्यों के अनुरूप उन्होंने जो भाव अपने चेहरे पर अभिव्यक्त किए हैं वे कमाल के हैं। वहीं दूसरी ओर सैफ अली खान पुलिस इंस्पेक्टर के किरदार में पूरी तरह रमे नजर आते हैं। निर्देशन भी अच्छा और बैकग्राउण्ड म्यूजिक ऋतिक के हर दृश्य को नायक की तरह पेश करता है। सैम.सी.एस. का बैकग्राउण्ड म्यूजिक आम जनता में चर्चा का विषय बनेगा।

इतना सब कुछ बेहतरीन होने के बावजूद दर्शकों ने फिल्म को देखने का मानस नहीं बनाया इसका सबसे बड़ा कारण यह सामने आया कि दर्शक इस फिल्म के मूल वर्जन को कई बार घर पर देख चुके हैं। इसी के चलते दर्शक कम संख्या में सिनेमाघर पहुँचे।

इस फिल्म की असफलता ने फिर एक बार यह सिद्ध कर दिया है कि हिन्दी सिनेमा को मौलिकता की ओर रुख करना होगा। स्वयं की पुरानी फिल्मों के रीमेक और दक्षिण की ब्लॉकबस्टर फिल्मों के रीमेक से स्वयं को दूर रखते हुए दर्शको को वो देना होगा जो उन्होंने पहले कहीं नहीं देखा या सुना है। दक्षिण भारतीय फिल्मकारों ने उनकी फिल्मों के रीमेक की सफलता को देखते हुए अब अपनी फिल्मों को हिन्दी में भी पेश करना शुरू कर दिया है। उनकी फिल्मों को हिन्दी भाषी दर्शक हाथों-हाथ ले रहा है।

इस को लेकर दर्शकों से बातचीत करने पर सामने आया कि दक्षिण की फिल्मों की सफलता के दो महत्त्वपूर्ण कारण हैं—पहला वे मौलिक कथानक के साथ फिल्म को बनाते हैं, जिसमें एक्शन व इमोशन्स का पूरा मसाला होता है। वहाँ के सितारे ओटीटी प्लेटफार्म और यूट्यूब के चलते हिन्दी भाषी दर्शकों को अपने साथ जोडऩे में कामयाब हो चुके हैं, सितारों की लोकप्रियता का लाभ निर्माता निर्देशक उठा रहे हैं। दूसरा सबसे बड़ा कारण जो उनकी फिल्मों को सफल बनाता है वह है पारिवारिक मूल्यों को अपने हर कथानक में साथ रखना। दक्षिण की किसी भी फिल्म को ले लीजिए वहाँ का कथानक पूरे परिवार के इर्द-गिर्द घूमता है न कि सिर्फ नायक और खलनायक के जैसा कि आम तौर पर हिन्दी फिल्मों में देखने को मिलता है। आप दक्षिण की पिछली सफल फिल्मों पर नजर डालें तो पाएंगे कि फिल्म का हर किरदार परिवार के साथ जुड़ा हुआ है, वहीं हिन्दी फिल्मों से परिवार नदारद है। यदि कहीं नजर आता है तो वह फोटो फ्रेम के तरह होता है।

हाल ही में प्रदर्शित हुई आर.बाल्की की चुप में किरदारों के साथ परिवार का कथानक नजर आया। सतही तौर पर ही सही लेकिन बाल्की ने यह शुरूआत तो की। कथा-पटकथा में परिवारिक घटनाओं के होने से परदे पर भावनात्मक दृश्यों को दिखाने में आसानी होती है, जो दर्शकों को अपनी तरफ आकर्षित करने में सफल होते हैं। यही आकर्षण फिल्म की सफलता बन जाता है।

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