दिनांक 04 सितम्बर, 2025 उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, भगवती चरण वर्मा एवं अमृतलाल नागर स्मृति समारोह के अवसर पर दिन गुरुवार 04 सितम्बर, 2025 को एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन हिंदी भवन के निशाला समागार लखनऊ में पूर्वाहन 10.30 बजे से किया गया।
दीप प्रज्वलन, सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण, पुष्पार्चन के उपरांत वाणी वंदना श्री सरस्वती मर्चा द्वारा प्रस्तुत की गई।
सममाननीय अतिथि- डॉ. योगेन्द्र प्रताप सिंह श्री योगाचार्य जी, श्री गोपाल सिंह श्री नीलकंठ शास्त्री एवं श्री अनिल रस्तोगी श्री स्वागत स्मृति चिन्ह मेट कर डॉ. अमिता दूबे, प्रधान संपादक, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा किया गया।
डॉ. योगेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी अपनी रचनाओं में लोक और शास्त्र का समन्वय करते हैं। उनमें समन्वय की दृष्टि थी। द्विवेदी जी गंभीर चिंतक थे। उनकी रचनाएं काफी संघर्षमय जीवन से प्रेरित हैं। आचार्य जी हजारी प्रसाद द्विवेदी कबीर के चिंतन को महत्वपूर्ण मानते थे। कबीर और नाथ संप्रदाय पर हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपनी लेखनी चलाई। “अशोक का फूल” व “कुटज” उनके निवन्धों में प्रमुख हैं। हजारी प्रसाद द्विवेदी की रचनाओं में किसी भी विषय पर विस्तार से कहने की क्षमता थी। कबीरदास पर लिखी उनकी रचना “कबीर” काफी प्रसिद्ध रही। “रामचरित मानस की आलोचना” उपन्यास साहित्यिक जगत में काफ़ी महत्वपूर्ण है। द्विवेदी जी की रचनाओं में समन्वय और आत्मसात की तत्वों का समन्वय है।
श्री गोपाल सिंह ने कहा- भगवतीचरण वर्मा जी कहानीकार, उपन्यासकार और कवि के रूप में हमारे सामने आते हैं। भगवतीचरण वर्मा जी ने अपनी साहित्यिक रचनाओं की शुरुआत काव्य से की। बाल्यकाल से ही उन्होंने काव्य रचना करनी प्रारंभ कर दी थी। उनकी पहचान मूलतः छायावादी कवि के रूप में थी। भगवतीचरण वर्मा जी की “ऐसी गांधी” कविता काफ़ी चर्चित रही। “चित्रलेखा” उपन्यास ने उनकी कीर्ति को और बढ़ाया। “टेली-मैस रास्ते”, “रेखा”, “सीधी सच्ची बातें” आदि प्रमुख रचनाएं हैं। “पूले बिस्तरे चिंत” उपन्यास को साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला। भगवतीचरण वर्मा जी कई फिल्मों में पटकथा भी लिखी। भगवतीचरण वर्मा जी में देश प्रेम भरा हुआ था। वह राज्यसभा के सदस्य भी बनाए गए थे।
डॉ. अनिल रस्तोगी ने कहा- अमृतलाल नागर जी ने साहित्य की सभी विधाओं में अपनी लेखनी चलाई। नागर जी ने अपनी साहित्यिक यात्रा काव्य से शुरू की थी। धीरे-धीरे साहित्य की गहराई में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाया। नागर जी ने रोचक वाणी साहित्य की रचना की। उनकी कुशल संपादक के रूप में कई भाषाओं का ज्ञान था। “गदर के फूल” रचना में स्वतंत्रता संग्राम का झलक मिलती है। नागर जी की मूल पहचान उनके उपन्यासों से उन्हें मिली। अमृतलाल नागर जी कहानी कहने के लिए जाने जाते थे। उनकी प्रसिद्ध रचना “मानस का हंस” उपन्यास को साहित्यिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
इस स्मृति समारोह के अवसर पर श्री राहुल ने अमृतलाल नागर की “नटखट खरगोश” एवं पश्कथा “सात भाई चनन”, सुश्री अनमोल शर्मा भगवती चरण वर्मा की कहानी “दरना हम भी आएंगे” काम किया। सुश्री सरिता गिरी ने भगवती चरण वर्मा की कविता “सीमाओं से मोह”, श्री देवेन्द्र सिंह हजारी प्रसाद द्विवेदी की कहानी “मन-मरजन” एवं सुश्री सोन्या मिश्रा ने हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध “अब कुछ कहिए” का पाठ किया।
श्री ओम प्रकाश सिंह, विशेष सचिव (माफ़) ने कहा- मुश्करहट से कई समस्याओं का समाधान निकल सकता है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, भगवती चरण वर्मा एवं अमृतलाल नागर जी तीनों विभूतियों साहित्य जगत में विशिष्ट स्थान रखती हैं। इन साहित्यकारों ने अपना पूरा जीवन साहित्य के लिए समर्पित कर दिया।
डॉ. अमिता दूबे, प्रधान संपादक, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा कार्यक्रम का संचालन एवं संगोष्ठी में उपस्थित समस्त साहित्यकारों, विद्वानों एवं मीडिया कर्मियों का आभार व्यक्त किया गया।
इस अवसर पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. शमुनाथ को श्रद्धांजलि अर्पित की गई साथ ही विद्वानों की सभा में दो मिनट का मौन रखकर दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की।