संवाद सहयोगी, गुमला : आज से ठीक एक साल पहले जब कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिए जब पूरे देश में लाकडाउन लगा तो लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। कई लोगों की नौकरी चली गई। वहीं बाहर के प्रदेशों में रहकर नौकरी कर रहे लोग नौकरी जाने पर वापस अपने-अपने घर लौटने लगे। ऐसे में उनके समक्ष बेरोजगारी के के साथ-साथ आर्थिक संकट उत्पन्न हो गई। पर कोरोना महामारी से उत्पन्न आपदा ने लोगों को स्वरोजगार का द्वारा खोल दिया। किसी ने खेती करना शुरु कर दिया तो किसी ने बकरी पालन, मुर्गी पालन, किसी ने सब्जियों बेचकर ही अपना जीवन यापन शुरु कर दिया।
गुमला शहर से सटे विकास नगर में रहने वाली महिला पुष्पा टोप्पो भी लाकडाउन से प्रभावित हुई। पति को काम छूटने पर उसके सामने आर्थिक संकट उत्पन्न हो गई। इस संकट में उसने धैर्य से काम लिया। उसने थोड़ी पूंजी लगाकर सब्जी की दुकान लगाना शुरु कर दिया। अब वह नियमित रुप से सब्जी की दुकान चलाती है। अपने बच्चों को लालन पालन करती है।
गुमला के कोयनारा जामटोली निवासी संतोष साहु गांव छोड़कर रोजगार की तलाश में हिमाचल प्रदेश चला गया था। हिमाचल प्रदेश में काम के दौरान लाकडाउन में उसकी नौकरी छूट गई और वह घर वापस लौट आया। बेरोजगारी व आर्थिक तंगी के कारण उसने खेती करने की सोची और गांव के बाहर अंबेराडीह में एक बंजर भूमि मालिक से संपर्क कर उस बंजर भूमि में खेती किसानी के लिए अपना प्रस्ताव रखा। जमीन के मालिक ने संतोष के प्रस्ताव पर न सिर्फ स्वीकृति प्रदान की बल्कि उसे सुविधा भी मुहैया कराई। फिर संतोष ने अपनी मेहोनत से उक्त बंजर भूमि के खेती योग्य बनाया और अब उसमें फसल लहलहाने लगे हैं। संतोष ने खेत में भिडी, झिगी, लौकी, प्याज, लहसून, करैला, बोदी मिर्चा आदि की फसल को लगाया है। खेत में उपजी सब्जी को बेचकर संतोष मजदूरी से ज्यादा रुपये कमा रहे हैं।
—- रायडीह के लोगों को दिया रोजगार
कोरोना संक्रमण के कारण हुए लाकडाउन ने देश भर की आर्थिक स्थिति को हिला दिया है। मरदा गांव निवासी अनिरूद्ध सिंह लाकडाउन होते ही रायडीह प्रखंड के मरदा स्थित अपने घर पर आ गए। उसी दौरान गांव में भी कई युवक लॉकडाउन के दौरान वापस लौट आए थे। इन युवकों को रोजगार देने के विचार से अनिरुद्ध सिंह ने जैविक खेती करने और भविष्य में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के संसाधन जुटाने का संकल्प लिया। अपने गांव में बेकार जमीन की जोत कोड़ करवायी। जमीन की घेराबंदी की गई। सिचाई के लिए कुआं बनवाया गया और फसल की रखवाली के लिए कमरे बनवाए गए। जैविक तरीके से एक हजार पपीता के पौधा लगाए गए हैं। इसमें रसायनिक उर्वरक का उपयोग ही नहीं किया गया है। केंचुआ खाद और अन्य जैविक खादों का उपयोग कर पौधारोपण कराए गए हैं। इस काम में सैकड़ों मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराया। लाकडाउन के दौरान मरदा गांव के युवाओं को बेरोजगारी का एहसास नहीं होने दिया गया।