One Nation One Election के खिलाफ 5 राज्यों के मुख्यमंत्रियों मोदी सरकार बोला हल्ला, मंशा पर उठाए सवाल

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नई दिल्ली : एक देश, एक चुनाव के मोदी सरकार की मंजूरी मिलने के बाद 5 राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने मोर्चा खोल दिया है। सभी ने मोदी सरकार अवधारणा और मंशा पर सवाल खड़े किए हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गुरुवार को केंद्र सरकार पर लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने के फैसले को लेकर तीखा हमला बोला और इस कदम को असंवैधानिक और संघीय व्यवस्था विरोधी करार दिया।

 

बनर्जी ने एक्स पर एक पोस्ट में आरोप लगाया कि प्रस्तावित एक राष्ट्र एक चुनाव विधेयक सत्ता को केंद्रीकृत करने और भारत के लोकतंत्र को कमजोर बनाने की एक कोशिश है।

 

बनर्जी ने लिखा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने असंवैधानिक को संघीय ढांचे के विरोधी एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक को मंजूरी दे दी है, जिसमें एक्सपर्ट और विपक्षी नेताओं की हर जरूरी चिंता को नजर अंदाज किया गया है। यह कोई सावधानीपूर्वक विचार विमर्श के बाद लिया गया फैसला नहीं है। इसे भारत के लोकतंत्र और संघीय ढांचे को कमजोर करने के लिए यह थोपा गया है। उन्होंने कहा हमारे सांसद संसद में इस काले कानून का पुरजोर विरोध करेंगे। बंगाल दिल्ली की तानाशाही सनक के आगे कभी नहीं झुकेगा। यह लड़ाई भारत के लोकतंत्र को निरंकुशता के चंगुल से बचाने के लिए है।

 

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि भाजपा नीति केंद्र सरकार ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की बात करती है, लेकिन दो राज्यों में एक साथ चुनाव कराने में भी असमर्थ है। उन्होंने संसद परिसर में मीडिया से कहा कि वे एक राष्ट्र, चुनाव की बात करते हैं, लेकिन दो राज्य, एक चुनाव भी नहीं करा सकते। इसका मतलब है कि उनके मन में कुछ और चल रहा होगा।

 

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा कि यह अव्यावहारिक और लोकतंत्र विरोधी कदम है, जो क्षेत्रीय दलों और संघवाद को खत्म कर देगा। उन्होंने एक्स पर लिखा अव्यावहारिक और लोकतंत्र विरोधी कदम क्षेत्रीय आवाजों को मिटा देगा, संघवाद को नष्ट कर देगा और शासन को बाधित कर करेगा।

 

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक राष्ट्र, एक चुनाव को भाजपा का एजेंडा बताया और कहा कि इसके निहितार्थों को देखने की जरूरत है। सोरेन ने विधानसभा परिसर में पत्रकारों से कहा कि उनके पास बहुमत है वो कोई भी निर्णय ले सकते हैं लेकिन इसके निहितार्थ और परिणाम को समझने की जरूरत है।

 

कांग्रेस शासित कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी एक राष्ट्र, एक चुनाव बिल पेश करने की केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले की आलोचना की और इस कदम को संसदीय लोकतंत्र और भारत के संघीय ढांचे पर हमला बताया। उन्होंने एक बयान में कहा कि यह फैसला राज्यों के अधिकारों पर अंकुश लगाने की एक बड़ी साजिश है। उन्होंने कहा ऐसे समय में जब मौजूदा चुनावी व्यवस्था में सुधारों की सख्त जरूरत है ऐसे विधेयक से लोकतंत्र की नींव और कमजोर होगी। ऐसे महत्वपूर्ण विधेयक को मंजूरी देने से पहले मोदी सरकार को विपक्षी दलों और राज्य सरकारों से सलाह लेनी चाहिए थी। हालांकि अपनी सत्तावादी प्रवृत्ति के अनुरूप भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार इस अलोकतांत्रिक प्रस्ताव को देश पर थोपने की कोशिश कर रही।

 

आम आदमी पार्टी ने भी एक राष्ट्र, चुनाव की अवधारणा पर सवाल उठाए हैं। आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि देश को एक राष्ट्र, एक शिक्षा और एक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की जरूरत है ना कि एक राष्ट्र, एक चुनाव की। यह भाजपा की गलत प्राथमिकताओं को दर्शाता है।

 

तेलंगाना में विपक्षी दल भारत राष्ट्र समिति (BRS) ने कहा कि वह एक राष्ट्र,एक चुनाव विधेयक पर कोई रूख अपनाने से पहले अधिक स्पष्टता चाहती हैष बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष के. टी. रामा राव ने कहा कि 2017 में जब एक साथ एक चुनाव कराने को लेकर बैठक बुलाई थी, तब बीआरएस ने इस अवधारणा का समर्थन किया था।

 

उन्होंने कहा लेकिन यह मोदी 3.0 है, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की तीसरी सरकार। मुझे नहीं पता कि उनके मन में क्या है। हम संघवाद के पक्के समर्थक हैं और क्षेत्रीय दलों की आवाज को सुने जाने का पुरजोर समर्थन करते हैं। हमें इंतजार करके देखना होगा कि विधेयक का रूप क्या होगा।

 

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा चीफ अखिलेश यादव ने भी वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर सवाल उठाए हैं। अखिलेशे यादव ने एक्स पर लिखा, ‘एक देश, एक चुनाव’ सही मायनों में एक ‘अव्यावहारिक’ ही नहीं ‘अलोकतांत्रिक’ व्यवस्था भी है क्योंकि कभी-कभी सरकारें अपनी समयावधि के बीच में भी अस्थिर हो जाती हैं तो क्या वहाँ की जनता बिना लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व के रहेगी। इसके लिए सांविधानिक रूप से चुनी गयी सरकारों को बीच में ही भंग करना होगा, जो जनमत का अपमान होगा।’

 

अखिलेश यादव ने आगे कहा कि दरअसल ‘एक देश, एक चुनाव’ लोकतंत्र के ख़िलाफ़, एकतंत्री सोच का बहुत बड़ा षड्यंत्र है। जो चाहता है कि एक साथ ही पूरे देश पर क़ब्ज़ा कर लिया जाए। इससे चुनाव एक दिखावटी प्रक्रिया बनकर रह जाएगा। जो सरकार बारिश, पानी, त्योहार, नहान के नाम पर चुनावों को टाल देती है, वो एक साथ चुनाव कराने का दावा कैसे कर सकती है। ‘एक देश, एक चुनाव’ एक छलावा है, जिसके मूल कारण में एकाधिकार की अलोकतांत्रिक मंशा काम कर रही है। ये चुनावी व्यवस्था के सामूहिक अपहरण की साजिश है।’

 

बता दें, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को ‘एक देश, एक चुनाव’ को लागू करने संबंधी विधेयकों को मंजूरी दे दी। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति ने एक साथ चुनाव कराने के संबंध में सिफारिशें की थीं, जिन्हें सितंबर में मंत्रिमंडल ने स्वीकार कर लिया था।

 

 

 

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