लखनऊ। उत्तर प्रदेश पंजाबी अकादमी की ओर से “श्री गुरु रामदास जी, श्री हरिमंदिर साहिब, श्री अमृतसरऔर राष्ट्रीय चेतना’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन, आलमबाग चन्दर नगर गेट स्थित श्री गुरु तेग बहादुर भवन मेंशनिवार 19 अक्टूबर को किया गया। इस अवसर पर आमंत्रित विद्वानों ने बताया कि सिखों के चौथे गुरु रामदास नेअमृतसर शहर बसाया था। इस अवसर पर कार्यक्रम कॉर्डिनेटर अरविन्द नारायण मिश्र ने संगोष्ठी में उपस्थित विद्वानोंको अंगवस्त्र और स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित भी किया।संगोष्ठी में आमंत्रित विद्वान दविन्दर पाल सिंह बग्गा ने बताया कि गुरु रामदास जी ने कई गांवों से जमीनखरीद कर साल 1570 के बाद बड़े सुनियोजित ढंग से नए विकसित नगर बसाने का महती कार्य किया। उनकीदूरदर्शिता इसी से प्रकट होती है कि उन्होंने एक ओर जहां जल आपूर्ति के लिए बड़े-बड़े सरोवर बनाए वहीं कुटीरउद्योग और लघु उद्योगों के कारीगरों के लिए अलग-अलग बस्तियां तक बसायी। यह नगर सबसे पहले चक्क रामदास,फिर रामदासपुर और फिर अमृतसर के रूप में प्रसिद्ध हुआ। बाद में अमृतसर सरोवर और इसके मध्य हरमंदिर साहिबका निर्माण हुआ जो सिख धर्म के सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार के लिए केंद्रीय स्थान और आध्यात्मिक शक्ति का झ्नोतस्थल बन गया।वरिष्ठ पंजाबी लेखक नरेन्द्र सिंह मोंगा ने बताया कि सिखों के चौथे गुरु श्री गुरु राम दास जी ने जिस क्षेत्रमें श्री अमृतसर नगर बसाया वह पौराणिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। अमृतसर में श्री हरिमंदिर साहिब से मात्रग्यारह किलोमीटर की दूरी पर राम तीर्थ स्थित है, जहां वाल्मीकि आश्रम में वाल्मीकि रामायण लिखी गई थी। लव-कुशका यहीं जन्म हुआ और बाल्यकाल में वहीं पालन पोषण किया गया। इस स्थान पर कई पुरातन मंदिर हैं और महर्षिवाल्मीकि की आठ फिट ऊंची स्वर्ण मंडित मूर्ति स्थापित है। बड़े होने पर पंजाब के इस क्षेत्र से विशेष प्रेम होने केकारण अयोध्या से आकर लव-कुश ने अमृतसर के निकट ही लवपुर और कुशपुर नगर बसाए जो कालांतर में लाहौरऔर कसूर के नाम से विख्यात हुए। लाहौर के निकट ही तलवंडी में श्री गुरु नानक साहिब ने बेदी कुल में जन्मलिया। पंजाब में बेदी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के पुत्र लव का वंशज कहे जाते हैं।वरिष्ठ पंजाबी कवि त्रिलोक सिंह ‘बहल ने इस अवसर पर सुनाया कि ‘धन गुरु रामदास तेरी व्डी वडाई ऐ,अंबरां दे तारेयां ने महिमा तेरी गाई ऐ, धन गुरु रामदास तेरी वडी वडाई ऐ’। इस सिलसिले को अगे बढ़ाते हुए वरिष्ठपंजाबी कवि अजीत सिंह ने सुनाया कि “अमृतसर सिफती दा घर, गुरुओं ने बसाया, ये गुरुओं का ही घर है, धन्यधन्य सब कहें, अमृतसर सिफती, प्रशंसा का घर है, लाखों श्रद्धालू नित लंगर यहाँ छकते, निरंतर सेवा करते, न अकतेन थकते, स्वर्ग के दृश्यों को करू कुर्बान मैं, जन्नत सी शान इसकी, शान आलीशान है।पंजाबी विदुषी रवनीत कौर ने इस अवसर पर कहा कि प्रथम हरमंदिर साहिब का निमर्माण साल 1604 में हुआथा। पांचवें सिख गुरु अर्जन साहिब ने प्रतीकात्मक रूप से इसे मुख्य द्वारों से निचले स्तर पर रखवाया था ताकिदर्शनार्थी झुक कर श्रद्धा सहित झुक कर प्रवेश करें। उन्होंने चारों दिशाओं में चार प्रवेश द्वार बनवाए जो यह दर्शाते हैं।कि यहां चारों वर्णों, जातियों, सभी पंथों, धर्मों के उपासकों के लिए प्रवेश अनुमन्य है। इसकी आधारशिला लाहौर केएक सूफी मुस्लिम संत मियां मीर ने रखी थी।

मंदिर को कई बार अफगान आक्रमणकारियों ने नष्ट किया था औरअंततः वर्ष 1776 में इसका पुनर्निर्माण किया गया था। मंदिर मुगल और राजपूत (हिंदू) स्थापत्य शैली के मिश्रण केलिए उल्लेखनीय है। युवा पंजाबी विदुषी रनदीप कौर ने कहा कि नम्रता की साक्षात मूर्ति, विद्या, दया, प्रेम और उदारताके प्रतीक, राज योगी, तख्तों ताज के मालिक, सच्चे पताशाह श्री गुरु रामदास जी का जन्म वर्तमान पाकिस्तान केलाहौर शहर में चूना मंडी में हुआ था। गुरु जी का जीवन गुरमत विचारधारा और सिख जीवन शैली की जीती जागतीमिसाल है। अमृतसर नगर का निर्माण, मसंद प्रथा, व्यापारिक केंद्र, संतोखसर, अमृतसर सरोवर इत्यादि कुछ कार्यआपकी महान उपलब्धियों में से एक है। कार्यक्रम में मुख्य रूप से यंगमैन असोसिएशन के अध्यक्ष हरपाल सिंह गुलाटी,कंवलजीत सिंह टोनी, जसबीर सिंह चावला, शरनजीत कौर, हरजीत कौर, रविन्दर कौर, मीनू पाठक, प्रियंका त्रिपाठी सहित अन्य उपस्थित रहे।