भारतीय परम्परा है पैर छूना, भूल चुके हैं युवा

हेल्थ

हाल ही में मकर संक्रांति के दिन मेरे बेटे के दोस्त घर पर आए। उसके आए हुए दोस्तों में दो ने मेरे व मेरी पत्नी के पैर छुए लेकिन दो ने नहीं छुए। थोड़ी बहुत बातचीत के बाद मेरी पत्नी ने अचानक से उन दो बच्चों से पूछा क्या आपके घर में बड़ों के पैर छूने की परम्परा नहीं है। सवाल सुनते ही बच्चों के चेहरे पर शर्मिन्दगी के भाव नजर आए।

पैर छूना पारम्परिक भारतीय परम्परा है, जिसे हम आधुनिकता की दौड़ में लगभग पूरी तरह से भुला चुके हैं। वर्तमान में चल रही युवा पीढ़ी के साथ-साथ कमोबेश इस पीढ़ी के कर्ताधर्ता भी इस परम्परा को धीरे-धीरे पीछे छोड़ चुके हैं। आज की युवा पीढ़ी और उनके दादा-दादी, नाना-नानी की पीढ़ी की सोच में मतभेदों के चलते ही इस परम्परा को भुला दिया गया है। पुरानी पीढी के लोगों की सोच होती है कि अपने से बड़ों और आदरजनों के पैर छूने चाहिए, जबकि नई पीढी को पैर छूने की समूची अवधारणा ही गुजरे जमाने की पिछड़ी सोच लगती है।

भारतीय संस्कृति अपनी विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं के लिए जानी जाती है। बड़ों के पैर छूना ऐसी परंपरा का एक उदाहरण है। चरण स्पर्श नामक वैदिक काल में भारत में बड़ों के पैर छूने की प्रथा को अपनाया गया था। चरण का अर्थ है पैर और स्पर्श का अर्थ है स्पर्श। हिन्दू परिवारों में बच्चों को बचपन से ही बड़ों का आदर करने की शिक्षा दी जाती है। हिंदू परंपरा के अनुसार, जब हम किसी बड़े व्यक्ति के पैर छूते हैं, तो आपको ज्ञान, बुद्धि, शक्ति और प्रसिद्धि की प्राप्ति होती है। चरण स्पर्श की मुद्रा एक प्रकार का व्यायाम है। पैर छूने के लिए नीचे झुकने से रीढ़ की हड्डी और कमर में खिंचाव होता है और शरीर में रक्त संचार बढ़ता है।

पौराणिक है यह परम्परा
पैर छूना पौराणिक समय से चलती आ रही भारतीय परम्परा है, जहाँ बड़ों व आदरजनक लोगों के पैर छुए जाते थे। बीते कुछ वर्षों में यह परम्परा खत्म सी हो गई है। हालांकि अभी पूरी तरह से इस परम्परा को युवा भी नहीं छोड़ सका है। कई परिवारों में हमें यह अभी भी दिखाई दे जाती है।
हमारे यहां पुराने समय से ही यह परंपरा चली आ रही है कि जब भी हम भी हम अपने से बड़े किसी व्यक्ति से मिलते हैं तो उनके पैर छूते हैं। इस परंपरा को मान-सम्मान की नजर से देखा जाता है। आज की युवा पीढी को कई मामलों में इससे भी परहेज है। नई पीढ़ी के युवा कई बार घर परिवार और रिश्तेदारों के सामाजिक दवाब में अपने से बड़ों के पैर छूने की परम्परा का निर्वाह तो करते हैं, लेकिन दिल दिमाग से वह इसके लिए तैयार नहीं होते। इसलिए कई बार पैर छूने के नाम पर बस सामने कमर तक झुकते भर हैं। कुछ थोड़ा और कंधे तक झुककर इस तरह के हावभाव दर्शाते हैं, मानों पैर छू रहें हो, लेकिन पैर छूते नहीं।

पैर छूने वाले को दें दिल से आशीर्वाद
पैर छूने वाले व्यक्ति को हमेशा दिल से आशीर्वाद देना चाहिए, इसी से पैर छूने और छुआने वाले को सकारात्मक परिणाम मिलते हैं। इससे हमारे पुण्यों में बढ़ोतरी होती है। आशीर्वाद देने से पैर छूने वाले व्यक्ति की उम्र बढ़ती है और नकारात्मक शक्तियों से उसकी रक्षा होती है।

इसका अपना एक मनोवैज्ञानिक कारण है
यह एक वैज्ञानिक क्रिया भी है, जो कि हमारे शारीरिक, मानसिक और वैचारिक विकास से जुड़ी हुई है, साथ ही इसका अपना एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी है। वास्तव में जब हम झुककर पैर छूते हैं तो जाहिर है हम उसके प्रति आदर का भाव रखते हैं, इसी भावना के चलते सकारात्मक ऊर्जा की लहर हमारे शरीर में पहुंचती है। इससे हमें एक विशिष्ट किस्म की ताजगी और प्रफुल्लता मिलती है।

नोट—यह लेखक के अपने विचार हैं, जरूरी नहीं है कि आप इन विचारों से सहमत हों।

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