पाकिस्तान में प्रधानमंत्री नहीं, सेना करती है प्रमुख फैसले

विदेश

वाशिंगटन । पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की सत्ता में वापसी होने या न होने का काई खास प्रभाव वाशिंगटन-इस्लामाबाद संबंधों पर नहीं पड़ेगा, क्योंकि दक्षिण एशियाई इस देश में ऐसे फैसले सेना प्रमुख द्वारा लिए जाते हैं, न कि प्रधान मंत्री। डॉन न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार यह विचार अमेरिका की राजधानी में सोमवार शाम आयोजित एक सेमिनार में वक्ताओं ने व्यक्त किया गया।

दक्षिण और मध्य एशियाई मामलों को देखने वाली लीजा कर्टिस ने कहा, मुझे नहीं लगता कि अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि पाकिस्तान में कौन प्रधानमंत्री होगा, अधिक महत्वपूर्ण यह है कि सेना प्रमुख कौन होगा। ट्रम्प के राष्ट्रपति रहने के दौरान सेना ही महत्वपूर्ण मुद्दों पर निर्णय लिया करती थी। जैसे कि परमाणु कार्यक्रम, भारत के साथ पाकिस्तान के संबंध और आतंकवाद से मुकाबला।

लेकिन कर्टिस ने कहा कि इस तरह का हाइब्रिड लोकतंत्र पाकिस्तान के लिए अच्छा नहीं होगा, क्योंकि यह स्वभाविक रूप से सरकार का अस्थिर रूप है।

चर्चा में पूर्व सीआईए ऑपरेटिव और विश्लेषक डगलस लंदन, संयुक्त अरब अमीरात में पूर्व अफगान राजदूत जावेद अहमद और वाशिंगटन में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने भाग लिया। डॉन न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट (एमईआई), वाशिंगटन में पाकिस्तान/अफगानिस्तान स्टडीज के निदेशक मार्विन वेनबाम ने अपने संस्थान द्वारा आयोजित सत्र का संचालन किया।

कर्टिस और हक्कानी दोनों का मानना था कि अब पाकिस्तान और अमेरिका उतने करीब नहीं हैं, जितने तब थे, जब अमेरिका अफगानिस्तान में था।

कर्टिस ने कहा कि अमेरिका यह सुनिश्चित करना चाहता है कि पाकिस्तान चीन के करीब न जाए।

उन्होंने कहा, अमेरिका चाहता है कि यूक्रेन में पाकिस्तान उसका समर्थन करे।

लंदन ने कहा कि अमेरिका के अफगानिस्तान से हटने के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव कम हो गया था।

हक्कानी ने उल्लेख किया कि अमेरिका-पाकिस्तान संबंध एक आर्थिक आवश्यकता के रूप में शुरू हुआ, लेकिन इसके नेताओं ने आर्थिक पहलू पर बहुत कम ध्यान दिया।

कर्टिस ने कहा कि पाकिस्तान के लिए अमेरिका की मुख्य चिंता परमाणु सुरक्षा और एक विफल राज्य की संभावना है।

अहमद ने कहा कि इमरान खान के आरोपों के कारण अमेरिका पाकिस्तान की मौजूदा राजनीतिक हालात में एक पार्टी बन गया था।

हक्कानी ने कहा कि सेना पर्दे के पीछे से अभी भी राजनीतिक घटनाक्रमों को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है।

कर्टिस ने टिप्पणी की कि खान को हटाए जाने के बाद सेना को बड़े पैमाने पर समर्थन की उम्मीद नहीं थी और अब वर्तमान राजनीतिक स्थिति अगले सेना प्रमुख के लिए एक बड़ी चुनौती होगी।

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