यारा रिव्यू: गैंगस्टर चौकड़ी की दोस्ती शानदार, देसी तड़का के साथ आकर्षक कहानी

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मुंबई। दोस्ती की कहानी बॉलीवुड में पहले भी कई तरह से कही जा चुकी है। वहीं ‘यारा’ के जरिए तिग्मांशु धूलिया ने चार गैंगस्टरों की कहानी को पर्दे पर उतारा है। विद्युत जामवाल, अमित साध, विजय वर्मा (विजय वर्मा), केनी बसुमतारी चार दोस्त हैं और वे ‘चौकड़ी गिरोह’ बनकर कई अवैध काम करते हैं। फिल्म की शुरुआत विद्युत जामवाल की आवाज से होती है। यह फिल्म फ्रेंच फिल्म ‘ए गैंग स्टोरी’ की हिंदी रीमेक है। विदेशी कहानी में देसी तड़का जोड़ने पर यह फिल्म कुछ बातों में दमदार है तो कुछ अहम जगहों पर बेहद कमजोर भी। तिग्मांशु ने दोस्ती-दुश्मनी और कई पुराने रियल लाइफ इवेंट्स को मिलाकर क्राइम ड्रामा फिल्म ‘यारा’ बनाई है।

प्लॉट की बात करें तो फिल्म की शुरुआत दो लड़कों फागुन (विद्युत जामवाल) और मितवा (अमित साध) की कहानी से होती है, जो बेहद मुश्किल हालात में एक-दूसरे से मिलते हैं और फिर उनके गैंगस्टर बनने की कहानी शुरू करते हैं। . इस अपराध की राह पर चलते हुए उसकी मुलाकात दो और दोस्तों से होती है। ये चारों भारत-नेपाल सीमा के आसपास पले-बढ़े हैं और पहले यहां अपराध करते हैं और फिर देश के कई हिस्सों में अवैध काम करते हैं।

कुछ समय बाद आपसी रंजिश के चलते ‘चौकरी गैंग’ की दोस्ती में दरार आ जाती है और ये सभी अपनी-अपनी गलती के चलते पुलिस की गिरफ्त में आ जाते हैं। ये फिल्म यहीं खत्म नहीं होती बल्कि यहीं से शुरू होती है. सात साल जेल की सजा काटने के बाद ये सभी अलग हो जाते हैं और 20 साल बाद रिश्ते में दरार के बावजूद किस्मत एक बार फिर उनसे मिलती है।

फिल्म का निर्देशन तिग्मांशु धूलिया ने किया है। फिल्म इंडस्ट्री में कई सफल फिल्में देने वाले तिग्मांशु धूलिया ने ‘यारा’ को देखकर किसी तरह इस फिल्म को संभाला है। फिल्म का डायरेक्शन काफी धीमा है और कहानी भी दर्शकों को पर्दे से बांधे नहीं रखती है। इस फिल्म का संपादन भी बिंदु पर नहीं है। एक सीन से दूसरे सीन पर इस तरह से छलांग लगाई जाती है कि दर्शक कंफ्यूज रहते हैं। इसलिए दर्शकों की कहानी में दिलचस्पी बनी रहती है। हालांकि फिल्म की सिनेमैटोग्राफी काफी अच्छी है लेकिन यह फिल्म के नेगेटिव को कवर करने के लिए काफी नहीं है। अंकित तिवारी, शान, क्लिंटन सेरेजो का संगीत भी बेहतरीन है।

परफॉर्मेंस के स्तर पर विद्युत जामवाल ने इस फिल्म को संभालने में पूरी जान लगा दी है। हवा में उछल-कूद करने से लेकर दोस्ती और रोमांस से भरे सीन तक वह काफी अच्छे लग रहे हैं। हालांकि श्रुति हासन के साथ उनकी केमेस्ट्री कुछ खास नहीं लग रही थी। अमित साध जैसे महान अभिनेता को पर्दे पर अपनी प्रतिभा दिखाने का ज्यादा मौका नहीं मिला। वहीं विजय वर्मा को चौकड़ी की दोस्ती में एक ताजगी भरा टच देता है. उनकी कॉमेडी टाइमिंग, फनी ऑनलाइनर और दोस्ती के लिए इमोशन काफी दिलचस्प हैं। इसके अलावा केनी को दिलफेंक आशिक के रूप में दिखाया गया था, वह एक छोटे से रोल में भी दर्शकों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।

फिल्म की खास बात यह है कि इसमें कोई मजबूत नकारात्मक किरदार नहीं है, बल्कि इसके मुख्य कलाकारों को ही वीरता से अपने भीतर के खलनायक को जगाना है। फिल्म का डायरेक्शन इस मुश्किल इमोशन को ठीक से नहीं दिखा पा रहा है लेकिन एक्टर्स अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते नजर आ रहे हैं.
Zee5 पर रिलीज हुई यह फिल्म 70 के दशक की कुछ वास्तविक घटनाओं जैसे इमरजेंसी को फिर से बनाने की कोशिश करती है। इस फिल्म में रोमांस के साथ-साथ अमीर-गरीब एंगल को भी बेकार रखा गया है. विद्युत जामवाल, अमिता साध की दोस्ती के लिए आप इस फिल्म को देख सकते हैं।

 

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