
नई दिल्ली, प्रेट्र। जनता कर्फ्यू के साथ शुरू हुई कोरोना महामारी से जंग ताली व थाली बजाने से होते हुए आज टीकाकरण पर आ टिकी है। इस दौरान एक दौर ऐसा भी आया जब अदृश्य दुश्मन के डर से लोग घरों में कैद होने को मजबूर हो गए, लेकिन इसी दौर ने खाकी के पीछे छिपी इंसानियत को भी दुनिया के सामने ला दिया। इस मुश्किल घड़ी में चिकित्सक भगवान बनकर सामने आए तो वैक्सीन की खोज में विज्ञानियों ने भी जान लगा दी। समाज को कई नायक मिले और दुश्वारियां सहते हुए लोगों की जिजीविषा भी देखने को मिली। इस दौरान कई राज्यों में सफलतापूर्वक चुनाव भी हुए। रोजगार के अवसर खत्म हुए, उद्योग धंधे ठप हुए, पढ़ाई-लिखाई भी रुकी लेकिन जिंदगी चलती रही। एक समय ऐसा भी आया कि लगने लगा कि हमने कोरोना से जंग जीत ली है, पर कुछ लोगों की लापरवाही व नासमझी ने हमें फिर पाबंदियों, सख्ती, कर्फ्यू व लॉकडाउन के अंधेरे कुएं की तरफ धकेल दिया है।
यूं तो देश में कोरोना संक्रमण का पहला मामला सुदूर दक्षिण के राज्य केरल में पिछले साल 30 जनवरी को सामने आए था, जब चीन के वुहान शहर से लौटी मेडिकल की एक छात्रा को संक्रमित पाया गया था। परंतु, इस महामारी खिलाफ जंग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 22 मार्च, 2020 को घोषित जनता कर्फ्यू के साथ शुरू हुई थी। उसके दो दिन बाद यानी 24 और 25 मार्च की दरम्यानी रात से 21 दिन का राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन का एलान कर दिया गया। मॉल से लेकर मार्केट, सिनेमा हाल, स्कूल, कॉलेज, कंपनियां और कार्यालय सब कुछ बंद हो गए। हवाई जहाज जमीन पर आ गए, रेल और वाहनों के पहिया ठहर गए।
पहले लॉकडाउन को जैसे-तैसे काटते लोगों के सब्र का बांध दूसरे लॉकडाउन की घोषणा से टूट गया। देश के विभिन्न शहरों से लोग हजारों किलोमीटर दूर अपने घरों के लिए पैदल ही निकल पड़े। इस दौरान सामने आई इंसानी पीड़ा ने दिल को झकझोर कर रख दिया, लेकिन अनजान, अपरिचित व बेसहारा लोगों की मदद के लिए बढ़े अनगिनत हाथों ने इंसानियत की मिसाल कायम की।