
नई दिल्ली, [नेमिष हेमंत]। बांग्लादेश की आजादी में जनसंघ (अब भाजपा) व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का योगदान कम नहीं था। उसने लंबे समय तक ‘बांग्लादेश को मान्यता दो’ सत्याग्रह किया था। इससे न सिर्फ बांग्लादेश के लोगों की पीड़ा को वैश्विक पटल पर उभारने में मदद मिली थी, बल्कि इससे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी बड़ा फैसला लेने की इच्छाशक्ति मिली थी। उस समय यह आंदोलन पूरे देश में चला था और दिल्ली का चांदनी चौक इसका प्रमुख केंद्र था। उस समय दिल्ली का मतलब ही चांदनी चौक या लुटियन दिल्ली होता था और अजमेरी गेट में जनसंघ का मुख्य कार्यालय था।
चांदनी चौक के प्रमुख समाजसेवी व कारोबारी नेता विजय गुप्ता उन दिनों को याद कर बताते हैं कि मुजीबुर्रहमान की पार्टी अवामी लीग को 1971 में जब बहुमत मिला और उन्होंने अलग बांग्लादेश की घोषणा कर दी तो पाकिस्तान की सेना ने वहां के लोगों पर जुल्म ढाने शुरू कर दिए थे। इसे लेकर जनसंघ ने इंदिरा सरकार पर हस्तक्षेप के लिए दबाव बनाने के लिए ‘बांग्लादेश को मान्यता दो’ आंदोलन चलाया था। इसके तहत तय हुआ कि हर सप्ताह एक तय दिन पर लालकिला से संसद भवन तक पैदल यात्रा निकाली जाएगी।
यह यात्रा चांदनी चौक, नई सड़क, चावड़ी बाजार, अजमेरी गेट व रामलीला मैदान होते हुए मिंटो ब्रिज से कनाट प्लेस की तरफ जाती थी। हर एक पदयात्रा में एक हजार से 1500 के बीच लोग हुआ करते थे। बांग्लादेश को मान्यता दो जैसे नारों से पूरा इलाका गूंज जाता था। जनसंघ के झंडे और बांग्लादेश के समर्थन में लोग प्लेकार्ड व बैनर लेकर चलते थे। उसमें हर वर्ग के लोग बढ़चढ़कर भाग ले रहे थे। यह आंदोलन भारत सरकार के बांग्लादेश को अलग देश के रूप में मान्यता देने तक चला।
यह यात्रा चांदनी चौक, नई सड़क, चावड़ी बाजार, अजमेरी गेट व रामलीला मैदान होते हुए मिंटो ब्रिज से कनाट प्लेस की तरफ जाती थी। हर एक पदयात्रा में एक हजार से 1500 के बीच लोग हुआ करते थे। बांग्लादेश को मान्यता दो जैसे नारों से पूरा इलाका गूंज जाता था। जनसंघ के झंडे और बांग्लादेश के समर्थन में लोग प्लेकार्ड व बैनर लेकर चलते थे। उसमें हर वर्ग के लोग बढ़चढ़कर भाग ले रहे थे। यह आंदोलन भारत सरकार के बांग्लादेश को अलग देश के रूप में मान्यता देने तक चला।